SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चैत्यवंदन विधि सहित धर्म (अपने अपने धर्मशासन) के आदिकर को, चतुर्विध संघ ( या प्रथम गणधर) के स्थापक को, (अन्तिम भव में गुरु बिना) स्वयंबुद्ध को (स्वयं बोध प्राप्त कर चारित्र-ग्रहण करनेवालों को), (२) जीवों में (परोपकार आदि गुणो से ) उत्तम को, जीवों में सिंह जैसे को, (जो परिसह में धैर्य, कर्म के प्रति क्रूरता आदि शोर्यादि गुणोसे युक्त), जीवों में श्रेष्ठ कमल समान को, (कर्मपंकभोगजल से निर्लेप रहने से ), जीवों में श्रेष्ठ गंधहस्ती समान को (अतिवृष्टि आदि उपद्रव को दूर रखने), (३) सकल लोक में गजसमान, भव्यलोक में (विशिष्ट तथा भव्यत्व से) उत्तम, चरमावर्त प्राप्त जीवों के नाथ को (मार्ग का 'योग-क्षेम ' संपादन-संरक्षण करने से ), पंचास्तिकाय लोक के हितरूप को (यथार्थ - निरुपण से), प्रभुवचन से बोध पानेवाले संज्ञि लोगों के लिए प्रदीप (दिपक) स्वरुप को, उत्कृष्ट १४ पूर्वी गणधर लोगों के संदेह दूर करने के लिए उत्कृष्ट प्रकाशकर को । (४) ‘अभय’- चित्तस्वास्थ्य देनेवालों को, 'चक्षु' धर्मदृष्टि-धर्म आकर्षण उपचक्षु देनेवालों को, 'मार्ग' कर्मके क्षयोपशमरुप मार्ग दिखानेवाले, 'शरण' - तत्त्वजिज्ञासा देनेवालों को, 'बोधि ' तत्त्वबोध (सम्यग्दर्शन) के दाता को । (५) चारित्रधर्म के दाता को, धर्म के उपदेशक को, (यह संसार जलते घर के मध्यभाग के समान है, धर्ममेघ ही वह आग बुझा सकता है...ऐसा उपदेश), धर्म के नायक (स्वयं धर्म करके औरों को धर्म की राह पर चलानेवालों) को, धर्म के सारथि को (जीव-स्वरुप अश्व को धर्म में दमन - पालन - प्रवर्तन करने से ), चतुर्गति - अन्तकारी श्रेष्ठ धर्मचक्र वालों को (६) अबाधित श्रेष्ठ (केवल ) - ज्ञान-दर्शन धारण करनेवाले, छद्म (४ घातीकर्म) नष्ट करनेवाले . (७) .
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy