________________
xxvii
सुगुरु वंदन विवेचन
गुरुको वंदन करते समय यह सूत्र बोला जाता है, इसलिए इसका नाम 'गुरुवंदन सूत्र' रखा गया है।
गुरु-वंदनाके तीन प्रकारो है ।“१- फिट्टा-वंदन, २- थोभवंदन और ३- द्वादशावत वंदन ।” जिसमें अंतिम 'द्वादशावर्त्त वंदन' - प्रसंग पर यह सूत्र बोला जाता है। ___ गुरु-चरणकी स्थापनाको स्पर्श करके निज-ललाट पर स्पर्श करो, जिसे 'आवर्त' कहा जाता है। ऐसे छह आवर्त एक वंदनमें आते है।अर्थात् दो बार वंदन करे तो बारह आवर्त' होते हैं | ___'गुरु-वंदन' का खास अर्थ शास्त्रविदोंने निन्मरूप से बताया है। :- 'वंदन' अर्थात् वंदन योग्य धर्माचार्योंको २५ आवश्यकों से विशुद्ध एवं ३२ दोषों से रहित करने हेतु किया गया नमस्कार। जिसमें २५ आवश्यककी गीनती इस प्रकार बताते हैं। “दो अवनत, यथाजात मुद्रा, द्वादशावर्त एवं कृतिकर्म, चार शिरोनमन, तीन गुप्ति, दो प्रवेश एवं एक निष्क्रमण।”
दो बार के वंदनमें ये क्रियाएँ निन्म रूप से की जाती है।
२ 'अवनत' : ईच्छामि खमासमणो !... निसीहिआओ बोलते वक्त अपना आधा तन झुका दिया जाता है | अर्धावनत-दो बार के वंदनमें दो अर्धावनत होता है । चित्र नं -१
१ 'यथाजात-मुद्रा' : जन्म के समय जैसी मुद्रा हो या दीक्षा योग का आचरण करते वक्त जो मुद्रा की जाती है, एसी नम्र मुद्रा (दोनो हाथ जोड़कर ललाट पर लगाये वैसे) वंदन करते समय धारण करनी चाहिए उसे यथाजात मुद्रा कहा जाता है।