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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
उसका अनाभोग (इस्तेमाल किये बिना विस्मृति हो जाने से किसी चीज को मुख में डाला जाये वह), सहसात्कार (अपने आप ही अचानक मुख में कोई चीज प्रवेश करे वह), महत्तराकार (बडी कर्मनिर्जराकी वजह आना वह) एवं सर्व-समाधि-आगार (किसी भी तरीके से समाधि नहीं ही रहती तब) ईन छह आगारों का (छूट) को रखकर त्याग करते है (करता हुँ)। (नोंध : विगइ त्याग, द्रव्य संक्षेप, अनाचार का त्याग, कर्मवश रातको खाने के पश्चात् खाने का त्याग आदि की धारणा करने के लिए यह सूत्र अत्यंत उपयोगी एवं आवश्यक है।)
मुट्ठिसहि पच्चक्खाण सूत्र अर्थ सहित
मुट्ठिसहि पच्चक्खाइ (पच्चक्खामि) अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्व-समाहि-वत्तियागारेणं वोसिरइ (वोसिरामि)। अर्थ - मुट्ठिसहित प्रत्याख्यान करते है (करता हुँ।) उसका अनाभोग (इस्तेमाल किये बिना विस्मृति हो जाने से किसी चीज को मुख में डाला जाये वह), सहसात्कार (अपने आप ही अचानक मुख में कोई चीज प्रवेश करे वह), महत्तराकार (बडी कर्मनिर्जराकी वजह आना वह) एवं सर्व-समाधि-आगार (किसी भी तरीके से समाधि नहीं ही रहती तब) ईन छह आगारों का (छूट) को रखकर त्याग करते है (करता हुँ)। (नोंध : समग्र दिन के दौरान जब कभी भी मुख शुद्ध हो तब यह पच्चक्खाण करना हितकारी है।)