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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
देशावगासिक पच्चक्खाण सूत्र अर्थ सहित देसावगासियं उवभोगं, परिभोगं पच्चक्खाइ ( पच्चकखामि ) अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्व-समाहि-वत्तियागारेणं वोसिरइ (वोसिरामि) ।
अर्थ - देशसे संक्षिप्त की गई हुई उपभोग एवं परिभोग की चींजो का प्रत्याख्यान करते है (करता हूँ) ।
उसका अनाभोग (इस्तेमाल किये बिना विस्मृति हो जाने से किसी चीज को मुख में डाला जाये वह), सहसात्कार (अपने आप ही अचानक मुख में कोई चीज प्रवेश करे वह), महत्तराकार (बडी कर्मनिर्जराकी वजह आना वह) एवं सर्व-समाधि-आगार (किसी भी तरीके से समाधि नहीं ही रहती तब ) ईन छह आगारों का (छूट) को रखकर त्याग करते है (करता हूँ) । (नोंध सचित्तदव्वविगई...आदि १४ नियमोंकी धारणा करनेवाले को सुबह-शाम यह पच्चक्खाण लेना चाहिए ।) धारणा- अभिग्रह पच्चक्खाण सूत्र अर्थ सहित धारणा अभिग्गहं पच्चक्खाई ( पच्चक्खामि ) अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्व-समाहि-वत्तियागारेणं वोसिरई (वोसिरामि) । अर्थ - कुछ समयकी मर्यादा के लिए तय किये गये अभिग्रहका प्रत्याख्यान करते है (करता हुँ।)
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