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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
अन्य पच्चक्खाणोमें अगर जल इस्तमाल (पी लिया) हो गया हो तो और बाद में विशेष तप करने का भाव अगर जन्मे तो 'धारणा अभिग्रह पच्चक्खाण' किया जा सकता है।
ग्रहण किये हुए पच्चक्खाण के मुकाबले आगे का विशिष्ट पच्चक्खाण किया जा सकता है, पर उससे कम, जीव के जोखम से नहीं करनेकी सावधानी रखनी चाहिए।
तिविहार या चउविहार उपवासके पच्चक्खाण एक से अधिक, एकसाथ (शक्ति अनुसार) लेने से अधिक विशिष्ट लाभ होता है। एक साथ १६ उपवास का पच्चक्खाण लिया जाता है।
जैन धर्मकी प्राप्तिकी वजह से जीवन में कभी भी अनुसरण करने की शक्यता न हो वैसे अनाचारों का पच्चक्खाण करने से उन पापकर्मों का सेवन न करने के बावजूद भी पच्चक्खाण न करने की वजह से वह पापकर्मों के विपाकों की भयानकता सहन करनी पड़ती होती है। ___ त्याग करने योग्य अनाचार सात व्यसन = मांस, मदिरा, जुआ, परस्त्री (परपुरुष) सेवन, चोरी, शिकार एवं वेश्यागमन । चार महाविगई = मध (HONEY), मदिरा (दारु), माखण (BUTTER) अने मांस (MUTTON), तरवार्नु (SWIMMING), घोडे सवारी (HORSE RIDING), ऊडन खटोला, सर्कस, प्राणी संग्रहालय (ZOO) देखने जाना, पंचेन्द्रिय जीवका वध करना, आईस्क्रीम, ठंडा पीना (COLD DRINKS), परदेशगमन आदि । अनाचारों में से हो शके उतनी चीजों का ‘धारणा अभिग्रह' पच्चक्खाण देव-गुरु-आत्मसाक्षीसे करने से पाप-कर्मो से बचा जा सकता है। संभव हो तो श्रावक-श्राविकागण को सम्यक्त्वमूल १२ व्रत ग्रहण करना चाहिए।