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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
जाकर सद्गुरु भगवंतकी वंदना करके उनके मुख से अर्थात् त्रुरुकी साक्षीमें पच्चक्खाण ग्रहण करते वक्त मनमें उन सूत्रों का उच्चारण करे एवं 'पच्चक्खाइ-वोसिरइ' नी जगह 'पच्चक्खामि-वोसिरामि'अनिवार्य रूप से बोले।
इस तरह आत्म-साक्षी, देवसाक्षी एवं गुरु की साक्षी में हमेशा पच्चखाण करने का आग्रह रखे। ___ नवकारशी से साढपोरिसि तक के पच्चक्खाण सूर्योदय से पूर्व ग्रहण कर लेना चाहिए पर पुरिमड्ड-अवड्ढके पच्चक्खाणको सूर्योदय के पश्चात् भी लिया जा सकता है | चउविहार, तिविहार एवं पाणहारके पच्चक्खाण सूर्यास्त से पहले ले लेना चाहिए या तो फिर धारण कर लेना चाहिए।
कम से कम नवकारशी एवं रात्रिभोजन त्यागका पच्चक्खाण एवं मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाण सद्गतिकी ईच्छा रखनेवाले प्रत्येक पुळ्यशालीव्यक्ति को अवश्य करना चाहिए। पंचमकालमें संघयण शक्ति अल्प होने की वजह से अनिवार्य परिस्थिति में ग्रहण किये हुए पच्चक्खाण में भंग न हो, उसके लिए आगार (छूट) पच्चक्खाणमें बताई गई हैं। पर उसका इस्तेमाल करनेकी अनुमति नहीं दी गई है, शायद दोष सहित हो जाये तो उसका प्रायश्चित्त- आलोचना गुरु भगवंतको निवेदन करनेके पश्चात् ग्रहण करना चाहिए।
नमुक्कारसहिअं (नवकारशी) आदि तमाम दिन संबंधित पच्चक्खाणों के साथ मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाण भी अवश्य ग्रहण किया जाता है | इसलिए पच्चक्खाण का आचरण करते समय अंगूठा भीतर रहे उस तरह मुहि बनाकर पच्चक्खाणका