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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित ३१५ पच्चक्खाण लेनेवाले की (ज्ञानी- अज्ञानी) विशुद्ध आदि भेद :१) विशुद्ध -पच्चक्खाण सूत्र एवं उसका अर्थ पहेचानने वाले के पास से ग्रहण करे । २) शुद्ध - पच्चक्खाण सूत्र एवं उसका अर्थ पहेचाने और अज्ञानी के पास ग्रहण करे | ३) अर्धशुद्ध - पच्चक्खाण सूत्र एवं उसके अर्थ को न पहेचाने पर उसके जानकार के पास वाले के पास से ग्रहण करे | ४) अशुद्ध - पच्चक्खाण सूत्र एवं उसका अर्थ न पहेचानने और अज्ञानी के पास से ग्रहण करे | (पहेला-दूसरा भांगा अच्छा तीसरा जानेवाले के पाससे ज्ञान प्राप्त करेगा ऐसी आशासे कुछ अच्छा पर चौथा भांगा तो संपूर्ण अनुचित ही कहा जायेगा।) पच्चक्खाण लेने का समय एवं उसके महत्त्व के बारे __ में जानकारी:श्री अरिहंत परमात्माके गुणोंका स्मरण करते करते सुबह उठनेके साथ ही १२ बार श्री नवकारमंत्र का जाप मनमें करे। उस वक्त यथाशक्ति पच्चक्खाणकी धारणा आत्मसाक्षीओ करनी चाहिए। तत्पश्चात् प्रातःकाल की राइअ प्रतिक्रमणमें तपचिंतामणीके कायोत्सर्ग के वक्त भी धारणा करनी चाहिए। तत्पश्चात् प्रातःकालकी वासचूर्ण (वासक्षेप) पूजा करने हेतु जिनालय जाना चाहिए | वहाँ इश्वर की साक्षीमें भी निर्धारित किये हुए पच्चक्खाण सूत्र के द्वारा अर्जित करे । तत्पश्चात् उपाश्रयमें
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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