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२६-हास्य, २७- रति, २९- अरतिपरिहरुं। चित्र नं - ७
२) उसी तरह बाये हाथकी ऊँगली में (अंतरमें) फँसाई गई मुहपत्ति को दाये हाथ के उपरसे लेकर प्रमार्जना करते हुए मनमें बोलें कि२९- भय, ३०- शोक, ३१-दुर्गच्छा परिहरुं। चित्र नं - ८
३) फिर ऊँगलीयों में से मुहपत्तिको निकालकर, दुगुनी ही रखकर दोनो हाथकी ऊँगलयों के अंतरे में बीठाकर, मुहपत्ति का नीचे का हिस्सा सीधा रहे उस तरह रखें। मुहपत्तिकी सुयोग्य प्रमार्जना हो उस तरह मस्तिष्क के मध्य भाग पर (बीच में) एवं दाई-बायी ओर तीन जगह पर प्रमार्जना करते हुए क्रमानुसार बोले कि..... ३२- कृष्णलेश्या, ३३- नीललेश्या, ३४- कापोतलेश्या परिहरु | चित्र नं -९ (महिलाएं यह बोल नहीं बोलती)
४) उसी तरह मुहपत्तिको मुख के बीच में एवं दाई-बायी ओर प्रमार्जना करते हुए क्रमानुसार बोले कि.... ३५- रसगारव, ३६- ऋद्धिगारव, ३७- सातागारव परिहीं। चित्र नं - १०
५) उसी तरह मुहपत्तिको हृदयके बीच में एवं दाई-बायी ओर प्रमार्जना करते हुए क्रमानुसार बोलो कि.... ३८-मायाशल्य, ३९-नियाणशल्य, ४०- मिथ्यात्वशल्य परिहरुं। चित्र नं -११ (महिलाएं यह बोल नहीं बोलती)
६) उसी तरह दोनो हाथमें मुहपत्ति रखकर बाये कंधे पर से