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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित ३०५ विसहर फुलिंग मंतं, कंठे धारेइ जो सया मणुओ, तस्स गह रोग मारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं (२) चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ, नर तिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्ख दोगच्चं (३) तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणि कप्पपाय वब्भहिए, पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं (४) इअ संथुओ महायस ! भत्तिब्भर निब्भरेण हिअएण, ता देव ! दिज्ज बोहिं, भवे भवे पास ! जिण चंद ! (५) उपद्रवों को दूर करने वाले पार्श्वयक्ष सहित, घातीकर्मोके समूह से मुक्त, सर्प के विष को नाश करने वाले, मंगल और कल्याण के गृहरूप श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं वंदन करता हूँ (१) । जो मनुष्य विसहर - फुलिंग मंत्र को नित्य स्मरण करता है, उसके ग्रहदोष,महारोग,महामारी और विषम ज्वर शांत हो जाते हैं (२) मंत्र तो दूर रहे, आपको किया हुआ प्रणाम भी बहत फल देने वाला है. मनुष्य और तिर्यंच गति में भी जीव दु:ख और दरिद्रता को प्राप्त नहीं करते हैं (३) चिंतामणि रत्न और कल्प वृक्ष से भी अधिक शक्तिशाली ऐसे आपके सम्यक्त्व की प्राप्ति होने पर जीव सरलता से अजरामर (मुक्ति) पद को प्राप्त करते हैं (४) हे महायशस्विन् ! मैंने इस प्रकार भक्ति से भरपूर हृदय से आपकी स्तुति की है, इसलिये हे देव ! जिनेश्वरों में चंद्र समान, हे श्री पार्श्वनाथ ! भवो भव बोधि जिनधर्म को प्रदान कीजिए (५) 'उवस्सग्गहरं' स्तोत्रके रचयिता चौद पूर्वधर श्री भद्रबाहुस्वामी है। उसमें मुख्यत्व श्री पार्श्वप्रभुकी स्तवना है। अपने भाई मिथ्याद्रष्टि वराहमिहिरके उपद्रवसे संघको बचाने के लिए इस स्तोत्रकी रचना की गई है।
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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