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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
नं नव जलहर तडिल्लय लंछिउ,
सो जिणु पासु पयच्छउ वंछिउ (२) चार कषाय रूपी शत्रुओं का नाश करने वाले, दुर्जेय ऐसे कामदेव के बाणों को तोड़नेवाले, नवीन प्रियंगु लता जैसे (नील) वर्णवाले, हाथी जैसी गतिवाले और तीनों लोक के नाथ श्री पार्श्वनाथ प्रभु जय को प्राप्त हों। (१) जिनके शरीर का तेजोमंडल मनोहर है, शोभित है, नागमणि के किरणों से युक्त है और सच ही बिजली युक्त नवीन मेघ समान है, वे श्री पार्श्वनाथ जिनेश्वर मनोवांछित फल प्रदान करो । (२) यह सूत्र श्री पार्श्वजिनका भाववाही चैत्यवंदन है ।
प्राकृत भाषामें से रुपांतरीत हुए अपभ्रंश भाषामें श्री पार्श्वजिनका भाववाही चैत्यवंदन है । चर्तुविध श्री संघ संथारापोरिसी' पढाते हो तब वडील यह सूत्र बोले और 'सामायिक पारते समय लोगस्स सूत्र के बाद खमासमण न देते हुए यह सूत्र चैत्यवंदन बोलते है | श्रावकको खेस का उपयोग यह सूत्र पूर्ण चैत्यवंदन (जय वीयराय सूत्र पूर्ण होने तक) हो तब तक करना चाहिए ।
श्री तीर्थंकर परमात्माकी उनके गुणो द्वारा स्तवना नमोत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं (१) आइगराणं, तित्थयराणं,
सयंसंबुद्धाणं (२) पुरिसुत्तमाणं, पुरिस-सीहाणं,
पुरिस-वर-पुंडरीआणं,
पुरिस-वरगंधहत्थीणं (३) लोगुत्तमाणं, लोग-नाहाणं, लोग-हिआणं, लोग-पईवाणं, लोग-पज्जोअगराणं.(४)