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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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श्री कुंथुनाथ को, श्री अरनाथ को व श्री मल्लिनाथ को, श्री मुनिसुव्रत स्वामी तथा श्री नमिनाथ को वंदन करता हूं । श्री नेमनाथ को, श्री पार्श्वनाथ को, श्री वर्धमान स्वामी (श्री महावीर स्वामी) को वंदन करता हूं I(४) इस प्रकार मुझसे अभिस्तुत (जिनकी स्तवना की गई है वे) कर्मरज- रागादि मल को दूर किया है (निर्मल) जिन्होंने वे, जरावस्था व मृत्यु से मुक्त (यानी-अक्षय) चौबीस भी (अर्थात् अन्य अनंत जिनवर के उपरान्त २४ जिनवर धर्मशासनस्थापकों मुझ पर अनुग्रह (प्रसन्न हो) करें |(५) कीर्तन, वंदन, पूजन किये गए ऐसे, व लोक (सुर असुर आदि सिद्धजन के समूह) में जो श्रेष्ठ सिद्ध हैं वे मुझे भव-आरोग्य (मोक्ष) के लिए बोधिलाभ एवं उत्तम भावसमाधि दें (६) चंद्रो से अधिक निर्मल, सूर्यो से अधिक प्रकाशकर, समुद्रों से उत्तम गांभीर्यवाले (उत्कृष्ट सागर स्वयंभूरमण जैसे गंभीर) और सिद्ध (जीवन्मुक्त सिद्ध अरिहंत) मुझे मोक्ष दें |(७)
(बांया चूंटना उपर कर चउक्कसाय’ बोले ।) सुंदर अलंकार युक्त भाषामें मंत्र गर्भित श्री पार्श्वनाथ प्रभुकी स्तुति करी हुई है ।
चउक्कसाय पडिमल्लु ल्लूरणु, दुज्जय मयण बाण मुसुमूरणु। सरस पियंगु वन्नु गय गामिउ, जयउ पासु भुवण त्तय सामिउ (१) जसु तणु कंति कडप्प सिणिद्धउ, सोहइ फणि मणि किरणा लिद्धउ।