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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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सुहुमेहिं खेल संचालेहिं, सुहुमेहिं दिहि संचालेहि, (२) एवमाइ एहिं आगारेहिं, अभग्गो अविराहिओ,
हुज्ज मे काउस्सग्गो (३) जाव अरिहंताणं भगवंताणं, नमुक्कारेणं न पारेमि (४) ताव कार्य, ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं,
वोसिरामि (५) सिवा श्वास लेना, श्वास छोडना, खाँसी आना, छींक आना, जम्हाई आना, डकार आना, अधोवायु छूटना, चक्कर आना, पित्त-विकार से मूर्छा आना, सूक्ष्म अंग-संचार होना, सूक्ष्म कफ संचार होना, सूक्ष्म दृष्टि-संचार होना, इत्यादि अपवाद के (सिवा), मुझे कायोत्सर्ग (काया के त्याग से युक्त ध्यान) हो, वह भी भग्न नहीं, खण्डित नहीं ऐसा कायोत्सर्ग हो । जहाँ तक (नमो अरिहंताणं बोल) अरिहंत भगवंतों को नमस्कार करने द्वारा (कायोत्सर्ग) न पारूं (पूर्ण कर छोडूं), तब तक स्थिरता, मौन व ध्यान रखकर अपनी काया को वोसिराता हूं (काया को मौन व ध्यान के साथ खडी अवस्था में छोड़ देता हूं)।
(एक लोगस्स ‘चंदेसु निम्मलयरा' तकका काउस्सग्ग अर्थात् चार नवकारका
काउस्सग्ग करे । और नीचे तरह प्रगट लोगस्स कहे ।)
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२४ तीर्थंकरोके नाम स्मरणकी स्तुति लोगस्स उज्जोअगरे;
धम्म तित्थयरे जिणे। अरिहंते कित्तइस्सं चउवीसं पि केवली (१)