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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
घिसा (घसीटे, या कुछ दबाये), परस्पर गात्रों से पिंडरूप किया, स्पर्श किया, संताप-पीडा दी, अंग भंग किया, मृत्यु जैसा दुःख दिया, अपने स्थान से दूसरे स्थान में हटाये, प्राण से रहित किये | उसका मेरा दुष्कृत (जो हुआ वह) मिथ्या हो |(७)
(सामायिक दरम्यान मन, वचन, कायाके सावद्य योग हुआ हो, तो उसकी शुद्धि हो जाती है। इसलिए सामायिक शुद्ध होती है।)
आते-जाते जीवोके विराधनाकी विषेश माफी R तस्स उत्तरीकरणेणं, पायच्छित्तकरणेणं, विसोहीकरणेणं, विसल्लीकरणेणं पावाणं कम्माणं;
निग्घायणडाए, ठामि काउस्सग्गं । (१) (जिस अतिचार दोषोका प्रतिक्रमण किया) उन पापोको विशेष शुद्ध करने के लिए, उनके प्रायश्चितसे आत्माकी विशुद्धिके लिए, आत्माको शल्यरहित करनेके लिए, पापकर्मोका घात करने के लिए मैं कायोत्सर्ग में रहता हुं । (कायोत्सर्ग के १६ अपवाद है, जो अन्नत्थ सूत्रमें बतायें है।)
____ काउस्सग्गके १६ आगार (छूटका) वर्णन । अन्नत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं,
उड्डएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए, पित्तमुच्छाए (१)
सुहमेहिं अंग संचालेहिं,