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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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४ निकायके देवदेवीओ, व्यंतरो, योगिनीओ का स्मरण
इअ तित्थ रक्खण रया,
अन्ने वि सुरा सुरीय चउहा वि, वंतर जाइणि पमुहा, कुणंतु रक्खं सया अम्हं । (११) इस प्रकास चतुर्विध संघके रक्षणके लिए सदा तत्पर ऐसे यक्ष
और यक्षिणी तथा दूसरे भी चारो प्रकारके देव-देवीर्यां तथा व्यंतर और योगिनी सदा हमारा रक्षण करो ।
शांतिनाथका, सम्यक्दृष्टि देवोका स्मरण ओवं सुदिहि सुर गण सहिओ संघस्स संति जिणचंदो, मज्झ वि करेउ रक्खें, मुणिसुंदरसूरि थुअ महिमा (१२) ऐसे सम्यग्दृष्टि देवोका समुह और श्री मुनिसुंदरसूरि जिन्होंने श्री शांति जिनचंद्रके महिमाका स्तवन किया है वे श्री शांतिनाथ प्रभु संघका और हमारा भी रक्षण करे |
स्तोत्रका मूल नाम इय 'संतिनाह सम्म दिहि रक्खं' सरइ तिकालं जो,
सव्वोवद्दव रहिओ, स लहइ सुह संपयं परमं । (१३) इस तरह जो सम्यग् दृष्टि मनुष्य श्री शांतिनाथकी रक्षाका त्रिकाल स्मरण करता है, वह मनुष्य सर्व उपद्रवोसे मुक्त होकर उत्कृष्ट सुखसंपदाको प्राप्त करते है |
क्षेपक है...स्तोत्रकार के गुरुके नाम स्मरण तवगच्छ गयण दिणयर जुगवर
सिरिसोमसुंदर गुरुणं, सुपसाय लद्ध गणहर विज्जासिद्धि भणइ सीसो| (१४)