________________
२९०
श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
(प्रतिक्रमण संपूर्ण होनेके बाद कोई कोई जगह ‘संतिकरं स्तव' बोलते है)
संतिकरं स्तोत्र MANY शांतिनाथका स्मरण, भक्तोके पालक तथा जय श्री
- देनेवाली निर्वाणीदेवी और गरुडका स्मरण संतिकरं संतिजिणं, जग सरणं जय सिरीइ दायारं,
समरामि भत्त पालग निव्वाणी गरुड कय सेवं (१) जो उपद्रवोका नाश करके शांति करनेवाले है, जगतके जीवोके आधार रुप है, जय और लक्ष्मीके दाता हे, और भक्तोका पालन करनेमें समर्थ ऐसे निर्वाणीदेवी और गरुड यक्ष से पूजित है ऐसे श्री शांतिनाथ भगवानका मैं स्मरण करता हुं |(१)
जय और श्री मंत्रोका स्मरण जो उपद्रव दुर करके इच्छित फल देता है ॐ सनमो विप्पो सहि पत्ताणं संति सामि पायाणं, झौं स्वाहा मंतेणं, सव्वा सिव दुरिअ हरणाणं। (२) ॐ संति नमुक्कारो, खेलोसहिमाइ लद्धि पत्ताणं,
सौं ह्रीं नमो सव्वोसहि पत्ताणं च देइ सिरिं । (३) विपृडौषधि (जिस लब्धिके प्रभावसे विष्टासे रोगोका शमन होता है), श्लेष्मौषधि (जिस लब्धिके प्रभावसे कफ आदि औषधिरुप होते है), सर्वोषधि (जिसमे शरीरके सर्व पदार्थ औषधिरुप होते है) ऐसी लब्धिओंके स्वामी तथा जिससे सर्व उपद्रव दूर होते है, ऐसे श्री शांतिनाथ भगवानको 'ॐ नमः', 'झौं स्वाहा' और सौं ह्रीं नमः' जैसे मंत्राक्षर पूर्वक नमस्कार हो । श्री शांतिनाथ भगवानको किया गया नमस्कार लक्ष्मी देता है |