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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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अखिल विश्वका कल्याण हो, प्राणी परोपकारमें तत्पर बनें; व्याधि-दुःख-दौर्मनस्य आदि नष्ट हों और सर्वत्र मनुष्य सुख भोगनेवाले हों | (२)(२१)
अहं तित्थयर माया, सिवादेवी तुम्ह नयर निवासिनी;
अम्ह सिवं तुम्ह सिवं,
असिवोवसमं सिवं भवतु स्वाहा (३) (२२) मैं श्रीअरिष्टनेमि तीर्थंकरकी माता शिवादेवी तुम्हारे नगरकी रहनेवाली हूँ - नगरमें रहती हूँ । अतः हमारा और तुम्हारा श्रेय हो, तथा उपद्रवोंका नाश करनेवाला कल्याण हो । (३)(२२)
(अनुष्टुप) उपसर्गा: क्षयं यांति, छिद्यते विध्न वल्लयः; मनः प्रसन्नता मेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे (४) (२३)
___ सर्व मंगल मांगल्यं,
सर्व कल्याण कारणम्। प्रधानं सर्वधर्माणां, जैन जयति शासनम् (५) (२४) श्रीजिनेश्वरदेवका पूजन करनेसे समस्त प्रकारके उपसर्ग नष्ट हो जाते हैं, विघ्नरूपी लताएँ कट जाती हैं और मन प्रसन्नताको प्राप्त होता है | (४)(२३) सर्व मंगलोंमें मंगलरूप, सर्व कल्याणोंका कारणरूप और सर्व धर्मों में श्रेष्ठ ऐसा जैन शासन सदा विजयी हो रहा है | (१)(२४)