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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
यह शान्तिपाठ, जिनबिम्बकी प्रतिष्ठा, रथयात्रा और स्नात्र आदि महोत्सवके अन्तमें (बोलना, इसकी विधि इस प्रकार कि है : -) केसर-चन्दन, कपूर, अगरका धूप, वास और कुसुमांजलिअञ्जलि में विविध रंगोंके पुष्प रखकर, बाँये हाथमें शान्ति-कलश ग्रहण करके (तथा उसपर दाँया हाथ ढककर) श्रीसंघके साथ स्नात्र मंडपमें खडे रहे । वह बाह्य-अभ्यन्तर मलसे रहित होना चाहिये तथा श्वेत वस्त्र, चन्दन, और आभरणोंसे अलंकृत होना चाहिये। फूलोंका हार गलेमें धारण करके शान्तिकी उद्घोषणा करे और उद्घोषणाके पश्चात् शान्ति-कलशका जल देवे, जिसको (अपने तथा अन्यके) मस्तक पर लगाना चाहिये |(१९)
__ अभिषेकके समय, जिनेश्वरोके भक्तोकी भक्तिके प्रकार
(८-प्रास्ताविक-पद्यान-उपजाति) नृत्यंति नृत्यं मणिपुष्पवर्षं, सृजंति गायति च मंगलानि; स्तोत्राणि गोत्राणि पठंति मंत्रान्,
कल्याणभाजो हि जिनाभिषेके, (१) (२०) पुण्यशाली जन, जिनेश्वरकी स्नात्रक्रियाके प्रसंग पर विविध प्रकारके नृत्य करते हैं, रत्न और पुष्पोंकी वर्षा करते हैं, (अष्टमंगलादिका आलेखन करते हैं तथा) मांगलिक-स्तोत्र गाते हैं और तीर्थंकरके गोत्र, वंशावलि एवं मन्त्र बोलते हैं | (१)(२०)
उपसंहार (गाथा) शिवमस्तु सर्वजगतः,
परहित निरता भवंतु भूतगणाः, दोषाः प्रयांतु नाशं, सर्वत्र सुखी भवतु लोक : (२) (२१)