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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
(दाये हाथकी मुठीकी चरवला या कटासणा पर स्थापना करके, मस्तक
झुकाकर, वडील हो तो वे, अड्डाइजेसु' कहे ।)
अढीद्वीप में रहेनेवाले, अठारह हजार शिलांग शील-चारित्रको धारण करनेवाले सर्व साधु
भगवंतोके विविध गुणोका स्मरण करके वंदना
अड्ढाइज्जेसु दीव समुद्देसु, (
पनरससु कम्म भूमीसु; जावंत के वि साहू, रयहरण गुच्छ पडिग्गह धारा। (१) पंच महव्वय धारा, अट्ठारस सहस्स सीलंग धारा;
अक्खुया यार चरित्ता, ते सव्वे सिरसा मणसा, मत्थएण वंदामि। (२) अढाई द्वीप और समुद्र की पंद्रह कर्म भूमियों में जो कोई साधु रजोहरण,गुच्छक एवं पात्र को धारण करने वाले (१) पाँच महाव्रत को धारण करने वाले, अटठारह हजार शील के अंगों को धारण करने वाले, अखंड आचार और चारित्र को धारण करने वाले हैं, उन सबको शरीर, मन और मस्तक से वंदन करता हूँ |(२)
यह सूत्र श्रावक-श्राविकागणे देवसिअ-राइअ प्रतिक्रमणमें छ आवश्यक पूर्ण होने के बाद भगवानह' आदि पंच परमेष्ठिको वंदन करने के बाद बोलना है | वडील भाग्यशाली सूत्र उच्चारे (अन्य सुने) तब सब दायें हाथकी हथेली चरवला/कटासणा उपर सीधी स्थापन करे ऐसी विधि है | पूज्य महात्माओ वंदितु सूत्र' के स्थान पगाम-सज्झाय' बोले तब उसमे खडे होकर दोनो हाथ जोडके योगमुद्रामें देवसिअ, राइअ, पख्खी, चौमासी और संवत्सरी प्रतिक्रमणमें ये सूत्र बोलते है ।
इच्छाकारेण संदिसह भगवन् !
देवसिय पायच्छित्त ACS विसोहणत्थं काउस्सग्ग करुं?