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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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त्यागकर आपको (अरिहंत और सिद्धस्वरुप) भगवंतोको वंदन करना चाहता हुं (और) मस्तक से वंदन करता हुं | (१)
इच्छा मि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, 5 मत्थएण वंदामि (२) आचार्यहं हे क्षमाश्रमण ! शरीरकी शक्ति सहित और पाप व्यापारको त्यागकर आपको (आचार्योको) वंदन करना वाहता हुं (और) मस्तक से वंदन करता हुं। (२)
इच्छा मि खमासमणो !
वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, A मत्थएण वंदामि (३) उपाध्यायह हे क्षमाश्रमण ! शरीरकी शक्ति सहित और पाप व्यापारको त्यागकर आपको (उपाध्यायोको) वंदन करना वाहता हुं (और) मस्तक से वंदन करता हुं। (३) न इच्छा मि खमासमणो !
वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, - मत्थएण वंदामि (४) सर्व-साधुहं हे क्षमाश्रमण ! शरीरकी शक्ति सहित और पाप व्यापारको त्यागकर आपको (सर्व-साधुओको) वंदन करना वाहता हुं (और) मस्तक से वंदन करता हुं। (२)