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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
जयगुरु संति गुणकरे, दो वि जिणवरे पणिवयामि । (१) गाहा ववगय मंगुल भावे; ते हं विउल तव निम्मल सहावे; निरुवम महप्पभावे, थोसामि सुदिह सब्भावे | (२) गाहा सव्व दुक्ख प्पसंतीणं, सव्व पाव प्पसंतीणं;
सया अजिअ सतीणं,
नमो अजिअ संतीणं । (३) सिलोगो समस्त भयोंको जीतनेवाले श्री अजितनाथको तथा सर्व रोगों और पापोंका प्रशमन करनेवाले श्रीशान्तिनाथको, इस तरह जगत्के गुरु और विघ्नोंका उपशमन करनेवाले इन दोनों ही जिनवरोंको मैं पंचांग प्रणिपात करता हूँ |(१) वीतराग, विपुल तपसे आत्माके अनन्तज्ञानादि निर्मल स्वरूपको (चौंतीस अतिशयोंके कारण) प्राप्त करनेवाले, अनुपम माहात्म्य तथा महाप्रभाववाले और सर्वज्ञ तथा सर्वदर्शी (ऐसे) दोनों जिनवरोंकी मैं स्तुति करता हूँ | (२) सर्व दुःखोंका प्रशमन करनेवाले, सर्व पापोंका प्रशमन करनेवाले और सदा अखण्ड शान्ति धारण करनेवाले श्री अजितनाथ और श्री शान्तिनाथको नमस्कार हो (३) स्तुतिका माहात्म्य, नमस्कारकी योग्यताका कारण और स्तुति करनेकी बिनती अजिअजिण ! सुह प्पवत्तणं, तव पुरिसुत्तम !
नाम कित्तणं ! तह य धिइ मइप्पवत्तणं, तव य जिणुत्तम संति कित्तणं । (४) मागहिसा