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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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पीडारहित, अपुनरावृत्ति सिद्धिगति नाम के स्थान को प्राप्त, भयों के विजेता, जिनेश्वर भगवंतों को नमस्कार करता हूं |(९) जो (तीर्थंकरदेव) अतीत काल में सिद्ध हुए, व जो भविष्य काल में होंगे, एवं (जो) वर्तमान में विद्यमान हैं, (उन) सब को मनवचन-काया से वंदन करता हूं |(१०)
इच्छाकारेण संदिसह भगवन् !
स्तवन भणुं ? 'इच्छं' हे भगवन् ! आप आज्ञा दिजीए में स्तवन पढुं ? आज्ञा मान्य है।
(अब 'अजितशांति' का स्तवन बोलना)
पंचपरमेष्ठिको नमस्कार
र
नमो
नमोर्हत् सिद्धा-चार्यो-पाध्याय
सर्व साधुभ्यः ।
(यह सूत्र स्त्रीयाँ कभी भी नहीं बोले)
अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्व साधुओं को
अजितशांति स्तवन
शत्रुजय पर श्री अजितनाथ और श्री शांतिनाथ भगवानकी विविध छंदोमे की गई स्तवना
अजिअं जिअ सव्वभयं, संतिं च पसंत सव्व गय पावं