________________
श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
अप्रशस्त भावों का उदय होने से - १) बिना विचारे किसी पर दोषारोपण करना २) कोई भी मनुष्य गुप्त बात करता हों उन्हें देखकर मनमाना अनुमान लगाना ३) अपनी पत्नी (या पति) की गुप्त बात बाहर प्रकाशित करना ४) मिथ्या उपदेश अथवा झूठी सलाह देना तथा ५) झूठी बात लिखना, इन पांच अतिचारों में वर्षभर में बंधे हुए अशुभ कर्म की मैं शुद्धि करता हूँ । (११-१२)
१५८
(अदत्तादानके अतिचार)
तइए अणुव्वयम्मि, थूलग पर दव्व हरण विरईओ; आयरिया मप्पसत्थे, इत्थ पमाय प्पसंगेणं । (१३)
तेना हडप्पओगे, तप्पडिरूवे विरुद्धगमणे अ; कूडतुल कूडमाणे, पडिक्कमे संवच्छरिअं सव्वं । (१४) तीसरे स्थूल अदत्तादान विरमण अणुव्रत के विषय में पांच अतिचार-प्रमाद से या क्रोधादि अप्रशस्त भावों से १) चोर द्वारा लाई हुइ वस्तु स्वीकारना २) चोरी करने का उत्तेजन मिले ऐसा वचनप्रयोग करना ३) माल में मिलावट करना ४) राज्य के नियमों से विरुद्ध वर्तन करना और ५) झूठे तौल तथा माप का उपयोग करना अन्य के पदार्थों का हरण करने से अटकनेरूप अदत्तादान विरमण व्रत के अतिचारों द्वारा वर्षभर में लगे हुए कर्मों की मैं शुद्धि करता हूँ । (१३-१४)
(मैथुनके अतिचार)
चउत्थे अणुव्वयंमि, निच्चं परदार गमण विरईओ; आयरिअम प्पसत्थे, इत्थ पमायप्पसगेणं । (१५) अपरिग्गहिआ इत्तर, अणंग विवाह तिव्व अणुरागे चउत्थ वयस्सइआरे, पडिक्कमे संवच्छरिअं सव्वं । (१६)