________________
श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
१५७
पांच अणुव्रत (स्थूल प्राणातिपात विरमण आदि) तीन गुणव्रत (दिकपरिमाण व्रतादि), चार शिक्षाव्रतों (सामायिकादि) (तप संलेखणा व सम्यक्त्वादि के) विषय में वर्ष संबंधी छोटे बड़े जो अतिचार लगे हों, उन सबसे मैं निवृत्त होता हुँ । (८)
(प्राणातिपात व्रतके अतिचार) पढमे अणुव्वयम्मि, थूलग पाणाइ वाय विरईओ आयरिअ मप्पसत्थे, इत्थ पमाय प्पसंगेणं। (९)
वह बंध छविच्छेए, अइभारे भत्त-पाण-वुच्छेए पढम वयस्सइयारे, पडिक्कमे संवच्छरिअं सव्वं । (१०) प्रथम अणुव्रत-स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत के विषय में पांच अतिचार-प्रमाद से परवश होकर या रागादि अप्रशस्त (अशुभ) भावसे-(जीव को) १) मार मारना २) रस्सी आदि के बंधन बांधना ३) अंगछेदन ४) ज्यादा भार रखना और ५) भूखा-प्यासा रखना, प्रथम व्रत के इन पांच अतिचारों में वर्षभर में जो कर्म बंधे हों उनका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ।। (९-१०)
(मृषावादके अतिचार) बीए अणुव्वयम्मि, परिथूलग अलिय वयण विरइओ
आयरिअ मप्पसत्थे, इत्थ पमाय प्पसंगेणं| (११)
सहसा रहस्स दारे, मोसुवएसे अ कूडलेहे अ; बीय वयस्सइआरे, पडिक्कमे संवच्छरिअं सव्वं । (१२) दूसरा अणुव्रत-झूठ बोलने से अटकने रूप स्थूल मृषावाद विरमण व्रत के विषय में पांच अतिचार-प्रमाद से अथवा रागादि