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प्रतिक्रमणमें उपयोगी उपकरणोका विवेचन
धर्मभावनाकी वृद्धि करनेवाले साधनोको उपकरण कहते है । १) स्थापनाचार्यजी - प्रतिक्रमण गुरुसाक्षीसे करना है। अगर गुरु नहीं हो तो नवकार और पंचिंदिय सूत्रवाले पुस्तक का, गुरुस्थान पर स्थापना करके सामायिक प्रतिक्रमणकी क्रिया करनी चाहिए ।
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२) कटासणुं - देढ हाथका समचोरस मापका, अखंड, सफेद उनका (wool) होना चाहिए सूक्ष्म जीवोकी रक्षा हो सके इसलिए कटासणा अखंड होना चाहिए । सामयिक करनेसे शरीरमें एक उर्जाका प्रवाह उत्पन्न होता है । कटासना उनका (wool) होने से वह उर्जा जमीनमें उतरने के बजाय शरीरमें ही रहकर शरीरको उर्जामय बनाये रखता है । ३) मुहपत्ति - मुहपत्ति कोटन कपडेकी, १२ X १२" की होनी चाहिए । उसकी तीन बाजु खुली और एक बाजु बंद होनी चाहिए । इसका कारणसंसारकी चार गतिमें से छूटकारा पानेके लिए सिर्फ मनुष्य गति ही सक्षम है। मुहपत्ति स्वच्छ होनी चाहिए । मुहपत्तिको मुखके पास रखनेके दो कारण है । १) ज्ञान, ज्ञानी और ज्ञानके साधनका विनय । बोलते समय थूक न उडे उसका विवेक रखना । २) सूत्र बोलते समय वाउकाय जीव मुँह में न चले जाय और उसकी रक्षा हो । मुहपत्तिका पडिलहेण पचास बोल बोलपूर्वक होना चाहिए । पुरुष वर्गको पचास बोल, और स्त्रीवर्गको चालीस बोलपूर्वक मुहपत्तिका पडिलेहण करना है । ४) चरवलो सामायिकमें उठने-बैठनेके लिए भूमिकी प्रमार्जना करनेके लिए काम आता है । चरवला ३२ उंगलीके नापका होता है । उसमें २४ उंगली आगेकी दांडी (आत्मा २४ दंडकसे दंड पाता है) और आठ उंगलीकी दशीर्यां (आत्माको ८ प्रकारके कर्मबंधसे मुक्त करनेके लिए) दर्शाया गया है । चरवलाकी दंडी लकडीकी होती है । चौरस दंडी स्त्रीओके लिए और गोल दंडी पुरुषोके लिए है। चरवला बिना क्रियामें खडा होना या स्थानफेर करना मना है ।