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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
पंचपरमेष्ठिको नमस्कार नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, - नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं, एसो पंच नमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणो,
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम हवइ मंगलं || (१) मैं नमस्कार करता हूं अरिहंतो को, मैं नमस्कार करता हूं सिद्धों को, मैं नमस्कार करता हूं आचार्यों को, मैं नमस्कार करता हूं उपाध्यायों को, मैं नमस्कार करता हूं लोक में (रहे) सर्व साधुओं को, यह पांचो को किया नमस्कार,समस्त (रागादि) पापों (या पापकर्मो) का अत्यंत नाशक है, और सर्व मंगलों में श्रेष्ठ मंगल है |(१)
आचार तथा व्रतोमें लगे हुए अतिचारकी निंदा - गर्दा __ और आत्माको पवित्र करे ऐसी भावना है
वंदितु सव्व सिद्धे, A धम्मायरिए अ सव्व साहू अ;
इच्छामि पडिक्कमिउं, सावग धम्माइ आरस्स। (१) सर्व (अरिहंतों को), सिद्ध भगवंतो को, धर्माचार्यों (अ शब्द से उपाध्यायों) और सर्व साधुओं को वंदन करके, श्रावक धर्म में लगे हुए अतिचारों का प्रतिक्रमण करना (व्रतों मे लगी हुई मलिनता को दूर करना) चाहता हुँ । (१)
(सामान्यसे सर्व व्रतके अतिचार) जो मे वयाइयारो, नाणे तह दंसणे चरित्ते अ सुहमो अ बायरो वा, तं निंदे तं च गरिहामि । (२)