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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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द्वारा, उत्सूत्र कहने से, उन्मार्ग में चलने से,अकल्पनीय वर्तन करने से, अकरणीय कार्य करने से, दुष्ट ध्यान करने से, दुष्ट चिंतन करने से, अनाचार करने से, अनिच्छित वर्तन से, श्रावक के योग्य व्यवहार से विरुद्ध आचरण करने से, ज्ञान संबंधी, दर्शन संबंधी, देश-विरति रुप चारित्र संबंधी, श्रुत ज्ञान संबंधी, सामायिक संबंधी, तीन गुप्तियों संबंधी, चार कषाय संबंधी और पांच अणु व्रत में, तीन गुण व्रत में, चार शिक्षाव्रत में-बारह प्रकार के श्रावकधर्ममें खंडना हुई हो, जो विराधना हुई हो, मेरे द्वारा संवच्छरी दिवस में जो अतिचार हुए हों, मेरे वे सर्वदुष्कृत्य मिथ्या हो ।
देव-गुरुको पंचांग वंदन इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए,
ॐ मत्थएण वंदामि (१) मैं इच्छता हूं हे क्षमाश्रमण ! वंदन करने के लिए, सब शक्ति लगाकर व दोष त्याग कर मस्तक नमाकर मैं वंदन करता हूं | (१)
इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! FOR संवच्छरी सुत्तं कढुं ? HGACHER इच्छं' हे भगवन् ! संवत्सरी सूत्र बोलनेकी आज्ञा दिजिए | आज्ञा प्रमाण है।
__ (तीन बार नवकार गीनना, साधु हो तो वह ‘संवच्छरी सूत्र' कहे और न हो तो श्रावक 'वंदितु सूत्र' कहे)