________________
श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
१४९
काय दुक्कडाए, कोहाए, माणाए, मायाए, लोभाए,
सव्वकालिआए, सव्वमिच्छो वयाराए,
सव्वधम्माइक्कमणाए आसायणाए जो मे अइयारो कओ, तस्स खमासमणो ! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि,
अप्पाणं वोसिरामि (७)
दुसरा वंदन (१-इच्छा निवेदन स्थान)
इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए (१)
SIWAN
(२-अनुपज्ञापन स्थान) अणुजाणह मे मिउग्गह, (२) निसीहि (गुरुके अवग्रहमें प्रवेश कर रहे हे ऐसा भाव दर्शानेके लिए शरीरको थोडा आगे करे)
अ हो का यं
काय संफासं खमणिज्जो भे ! किलामो ?
(३-शरीरयात्रा पृच्छा स्थान) अप्प किलंताणं ! बहु सुभेण भे !
संवच्छरो वइक्कंतो (३)
(४- संयमयात्रा पृच्छा स्थान) ।
- ज त्ता भे (४) \//- (५-त्रिकरण सामर्थ्यकी पृच्छा स्थान)
ज व णि जं च भे (५)