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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
(सकल संघको मिच्छा मि दुक्कडं) वांदणा - २५ आवश्यकके साथ ३२ दोषरहित, विनयभाव युक्त द्वादशावर्त वंदनका वर्णन
पहला वंदन (१-इच्छा निवेदन स्थान)
इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए (१)
__ (२-अनुपज्ञापन स्थान)
अणुजाणह मे मिउग्गह, (२) निसीहि __ (गुरुके अवग्रहमें प्रवेश कर रहे हे ऐसा भाव दर्शानेके लिए शरीरको थोडा आगे करे)
अ हो का यं
काय संफास खमणिज्जो भे ! किलामो ?
___ (३-शरीरयात्रा पृच्छा स्थान) अप्प किलंताणं ! बहु सुभेण भे !
संवच्छरो वइक्कतो (३)
(४- संयमयात्रा पृच्छा स्थान) । ज त्ता भे (४) । (५-त्रिकरण सामर्थ्यकी पृच्छा स्थान) ज व णि जं च भे (५)
(६-अपराध क्षमापना स्थान)
खामेमि खमासमणो ! संवच्छरीअं वइक्कम आवस्सिआए (अवग्रहमें से बहार नीकलकर, फिरसे आनेका भाव दर्शानेके लिए शरीरको थोडा पीछे करे)
पडिक्कमामि, खमासमणाणं, संवच्छरीआए आसायणाए तित्तीसन्नयराए, जं किंचि मिच्छाए, मण दुक्कडाए, वय दुक्कडाए,