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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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हे भगवन् ! इच्छासे आज्ञा दिजिए, संवत्सरी दिवस संबंधी पापसे विमुख होउं । दुष्ट चिंतन, दुष्ट भाषण और दुष्ट प्रवृत्ति संबंधी दिन में लगे सर्व अतिचारों का प्रतिक्रमण करने के लिये हे भगवान ! आप आज्ञा प्रदान करो | मैं आपकी आज्ञा स्वीकार करता हूँ |मेरे वे दुष्कृत्य मिथ्या हों |(१) हे भगवंत ! कृपा करके संवत्सरी तप प्रसाद दीजीयेजी।
( गुरुजी हो तो वे बोले, नहीं तो खुद बोले।)
अट्ठमभत्तेणं, तीन उपवास, र छह आयंबिल, नौ नीवि,
बारह एकासणां, चौबीस बेआसणां, छह हजार सज्झाय, यथाशक्ति तप करी पहोंचाडजो अठ्ठम - तीन उपवासका पच्चक्खाण एक साथ लेना, तीन उपवास अलग अलग करना, छह आयंबिल, नौ नीवि, बारह एकासणा, चोबिस बियासणा, छह हजार सझ्झाय, तप किया हो तो 'पईठिओ' कहना करना हो तो 'तह त्ति' कहना और न करना हो तो 'यथाशक्ति' कहना।
पहा
वांदणा - २५ आवश्यकके साथ ३२ दोषरहित, विनयभाव युक्त द्वादशावत वंदनका वर्णन
पहला वंदन (१-इच्छा निवेदन स्थान)
इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए (१)
(२-अनुपज्ञापन स्थान) अणुजाणह मे मिउग्गह, (२)निसीहि