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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
चारित्राचारके आठ अतिचार पणिहाण जोग जुत्तो, पंचहिं समईहिं तीहिं गुत्तीहिं |
एस चरित्तायारो, अह विहो होइ नायव्वो I (४) ईर्या-समिति (बिना देखे गमनागमन किया), भाषा-समिति (ते सावध वचन बोले), एषणा-समिति (अशुद्ध अन्न पानी लिया), आदान-भंडमत्त-निक्षेपणा-समिति (आसन, शयन, उपकरण, मातरु अणपूंजी जगह पर लिखा-रखा), और पारिष्ठापनिकासमिति (मल-मूत्र-श्लेष्मादिक अणपूंजी, सचित जगह पर परठव्या), मनोगुप्ति (मनमें आर्त-रौद्र ध्यान किया), वचन-गुप्ति (सावद्य वचन बोले) और काया-गुप्ति (शरीरका पडिलेहण नहीं किया, किये बिना हिलाया), ये आठ प्रवचन-माता ते साधु धर्ममें हमेशा और श्रावक धर्ममें सामायिक पौषधादिक में अच्छी तरह पाली नहीं |चारित्राचार संबंधी जो कोई अतिचार संवत्सरी दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते, अजानते लगा हो वह सब मन, वचन, काया से मिच्छा मि दुक्कडं । (३) विशेषतः श्रावक-धर्म संबंधी श्री-सम्यक्त्व मूल बारह व्रत । सम्यक्त्व के पाँच अतिचार - “संका कंख विगिच्छा" शंका :श्री अरिहंत प्रभु के बल, अतिशय, ज्ञान-लक्ष्मी, गांभीर्यादि-गुण, शाश्वती-प्रतिमा, चारित्रवान् के चारित्र में तथा जिनेश्वर देव के वचनमें संदेह किया | आकांक्षा :- ब्रह्मा, विष्णु, महेश, क्षेत्रपाल, गोगो, दिक्पाल, (नागदेवता) गोत्र देवता (पादर देवता), नव-ग्रह पूजा, गणेश, हनुमान, सुग्रीव, वाली, आदिक तथा देश, नगर, ग्राम, गोत्र के अलग अलग देवादिकों का प्रभाव देखकर, शरीर