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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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दर्शनाचारके आठ अतिचार निस्संकिय निक्कंखिय, निवि तिगिच्छा अमूढदिडिअ
उववूह थिरीकरणे, वच्छल्ल पभावणे अट्ठ | (३) देव गुरु-धर्म में निःशंक न हुआ । एकांत निश्चय न किया । धर्मसंबंधी फल में संदेह किया | साधु-साध्वी की जुगुप्सा-निंदा की । मिथ्यात्वियों की पूजा प्रभावना देख कर मूढ़दृष्टिपना किया |कुचारित्री को देख कर चारित्रवान पर भी अश्रद्धा की |संघ में गुणवान् की प्रशंसा न की | धर्म से पतित होते हुए जीव को स्थिर न किया ।साधर्मी का हित न चाहा | भक्ति न की | अपमान किया । देवद्रव्य, ज्ञानद्रव्य, साधारण द्रव्य की हानि होते हुए उपेक्षा की ।शक्ति होने पर भी भली प्रकार सार-संभाल न की । साधर्मी से कलह-क्लेश करके कर्म बंधन किया। अस्वच्छ, अष्टपद मुखकोश बांधे बिना वीतराग देव की पूजा की । धूपदानी, वासळूपी, कलश आदिक से प्रतिमाजी को ठपका लगाया, जिनबिंब हाथ से गिरा । श्वासोच्छ्वास लेते हुए आसातना हुई । जिन मन्दिर तथा पौषधशाला में थूका, तथा मल-श्लेष्म किया, मंदिरमें हँसी मस्करी की, कुतूहल किया | जिन मन्दिर संबंधी चौरासी आसातनाओं में से और गुरु महाराज संबंधी तैंतीस आसातनाओं में से कोई आसातना हुई हो, आहारनिहार किया । पान-सुपारी-निवेद्ध खाया । स्थापनाचार्य हाथ से गिरे हों या उन की पडिलेहणा न की हो |गुरु के वचन को मान न दिया हो, इत्यादि दर्शनाचार संबंधी जो कोई अतिचार संवत्सरी दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते, अजानते लगा हो वह सब मन-वचन-काया से मिच्छामि दुक्कडं । (२)