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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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(दायां चूंटना पडिलेहता) २०- पृथ्वीकाय, २१- अप्काय, २२- तेउकायकी जयणां करुं
(बायां छूटना पडिलेहतां) २३- वायुकाय, २४- वनस्पति काय,
२५- त्रसकायकी रक्षा क.
वांदणा - २५ आवश्यकके साथ ३२ दोषरहित, विनयभाव युक्त द्वादशावर्त वंदनका वर्णन
पहला वंदन (१-इच्छा निवेदन स्थान)
इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए (१)
___ (२-अनुपज्ञापन स्थान) अणुजाणह मे मिउग्गहं, (२)
निसीहि (गुरुके अवग्रहमें प्रवेश कर रहे हे ऐसा भाव दर्शानेके लिए शरीरको थोडा आगे करे)
अ हो का यं
काय संफास __खमणिज्जो भे ! किलामो ?
(३-शरीरयात्रा पृच्छा स्थान) अप्प किलंताणं ! बहु सुभेण भे ! संवच्छरो वइक्कतो
__ (४- संयमयात्रा पृच्छा स्थान) न
ज त्ता भे (४) W HAY (५-त्रिकरण सामर्थ्यकी पृच्छा स्थान)
ज व णि जं च भे (५)