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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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र) श्रावक कापन्द्रह कर्मादान र का है-भोग
सातवाँ भोगोपभोग परिमाण गुणव्रत दो प्रकार का है-भोगसे व कर्मसे | उसमें कर्मसे पन्द्रह कर्मादान (अति हिंसक प्रवृत्तिवाले व्यापार) श्रावक को छोडने चाहिए । वे इस प्रकार के हैं | १) अंगार कर्म-इंटका निभाड़ा, कुंभार-लोहार आदि, जिसमें अग्निका अधिक काम पडता हो ऐसा काम । २) वन कर्म-जंगल काटना आदि जिसमें वनस्पति का अधिक समारंभ हो, ऐसा कार्य | ३) शकट कर्म-गाडी मोटर, खटारा आदि वाहन बनाने का कार्य । ४) भाटक कर्म-वाहन या पशुओं को किराये पर चलाने का कार्य | ५) स्फोटक कर्मपृथ्वी तथा पत्थर फोडने का कार्य । ६) दन्त वाणिज्यहाथीदांत, पशु-पक्षी के अंगोपांग से तैयार हुई वस्तुओं को बेचना | ७) लाक्ष वाणिज्य-लाख, नील, साबु, हरताल आदि का व्यापार करना । ८) रस-वाणिज्य-महाविगइ तथा दूध, दही, घी, तैलादि का व्यापार | ९) केशवाणिज्य- मोर, पोपट, गाय, घोडा, घेटा विगेरेके केशका व्यापार । १०) विषवाणिज्य-जहर और जहरीले पदार्थों तथा हिंसक शस्त्रों का व्यापार | ११) यंत्रपीलनकर्म अनेकविध यन्त्र चक्की, घाणी आदि चलाना, अन्न तथा बीज पीसने का कार्य | १२) निलछिनकर्म-पशुओं का नाक-कान छेदना, काटना,
आँकना, डाम लगाना व गलाने का कार्य |१३) दवदानकर्मजंगलों को जलाकर कोयले बनाना | १४) जलशोषण कर्मसरोवर, कुआँ, स्त्रोत तथा तालाबादि को सुखाने का कार्य | १५) असतीपोषणकर्म-कुल्टा आदि व्यभिचारी स्त्रीयाँ तथा पशुओं के खेल करवाना, बेचना, हिंसक पशुओं के पोषण का कार्य | ये सब अतिहिंसक और अतिक्रूर कार्यों का अवश्यमेव त्याग करना चाहिए | (२२,२३)