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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
भोगोपभोग परिमाण नामक दूसरे गुणव्रत में मदिरा, मांस ('अ' शब्द से २२ अभक्ष्य, ३२ अनंतकाय, रात्रिभोजनादि) पुष्प, फल, सुगंधी द्रव्य, पुष्पमाला आदि (एक बार ही जिसका उपयोग हो सकता है वह जैसे कि खुराक,पानी, फल, इत्यादि), उपभोग (बारबार जिसका उपयोग हो सकता है वह जैसे कि घर, पुस्तक, वस्त्र, अलंकार इत्यादि) परिभोग संबंधी लगे हुए अतिचारों की मैं निन्दा करता हूँ | (२०)
सच्चित्ते पडिबद्धे,
अपोलि दुप्पोलिअंच आहारे, तुच्छो सहि भक्खणया, पडिक्कमे देसि सव्वं । (२१) १) निश्चित किए हुए प्रमाण से अधिक या त्याग किये हुए सचित आहार का भक्षण २) सचितसे जुडी हुई वस्तु का भक्षण जैसे कि गुटली सहित आम इत्यादि ३) अपक्व आहार का भक्षण जैसे कि ताजा पीसा हआ आटा, छाने बिना का आटा ४) कच्चे-पक्के पकाए हुए आहार का भक्षण जैसे कि शेकी हुई मकाई, जवारी का पुंख, इत्यादि ५) जिसमें खाने का भाग कम व फेंकने का भाग अधिक हो वैसी तुच्छ औषधिका भक्षण जैसे कि बेर, सीताफल इत्यादि, सातवें व्रत के भोगोपभोगो परिमाण गुणवतके इन पाँच अतिचार से दिवस संबंधी जो कर्मों की अशुद्धि लगी हो उनकी मैं शुद्धि करता हुँ । (२१)
इंगाली वण साडी, भाडी फोडी सुवज्जए कम्म: वाणिज्जं चेव दंत, लक्ख रस केस विस विसयं । (२२) एवं खु जंत पिल्लण, कम्म निल्लंछणं च दव दाणं; सर दह तलाय सोसं, असई पोसं च वज्जिज्जा। (२३)