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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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माणसिओ, उस्सुत्तो, उम्मग्गो अकप्पो, अकरणिज्जो,
दुज्झाओ, दुविचिंतिओ, अणायारो, अणिच्छिअव्वो, असावग पाउग्गो, नाणे, दंसणे, चरित्ता-चरित्ते,
सुए, सामाइए, तिण्हं गुत्तीणं, चउण्हं कसायाणं, पंचण्ह मणुव्वयाणं, तिण्हं गुण व्वयाणं, चउण्हं सिक्खा वयाणं, बारस
विहस्स सावग घम्मस्स, जं खंडिअंजं विराहि, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं | मैं कायोत्सर्ग में स्थिर होना चाहता हूँ | काया द्वारा, वाणी द्वारा, मन द्वारा, उत्सूत्र कहने से, उन्मार्ग में चलने से, अकल्पनीय वर्तन करने से, अकरणीय कार्य करने से, दुष्ट ध्यान करने से, दुष्ट चिंतन करने से, अनाचार करने से, अनिच्छित वर्तन से, श्रावकके योग्य व्यवहारसे विरुद्ध आचरण करने से, ज्ञान संबंधी, दर्शन संबंधी, देश-विरति रुप चारित्र संबंधी, श्रुत ज्ञान संबंधी, सामायिक संबंधी, तीन गुप्तियों संबंधी, चार कषाय संबंधी और पांच अणु व्रत में, तीन गुण व्रत में, चार शिक्षाव्रत में-बारह प्रकार के श्रावकधर्ममें खंडना हुई हो, जो विराधना हुई हो, मेरे द्वारा दिवस में जो अतिचार हुए हों, मेरे वे सर्व दुष्कृत्य मिथ्या हो ।
( यह सूत्र श्रावकका है। इसमें १२ व्रतधारी श्रावक या बिना व्रतधारी श्रावक का जीवन कैसा होना चाहिये, पंचाचारके आचरणमें लगते दोषो और वे सबकी
निंदा-गर्हापूर्वक प्रतिक्रमण करना है।)