________________
श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
९१
(दायां चूंटना पडिलेहतां) २०- पृथ्वीकाय, २१- अप्काय, २२- तेउकायकी जयणां करुं
(बायां छूटना पडिलेहतां) २३- वायुकाय, २४- वनस्पति काय,
२५- त्रसकायकी रक्षा करें
तीसरा आवश्यक वांदणा
वांदणा - २५ आवश्यकके साथ ३२ दोषरहित, विनयभाव युक्त द्वादशावर्त वंदनका वर्णन
पहला वंदन (१-इच्छा निवेदन स्थान)
इच्छामि खमासमणो ! न वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए (१)
(२-अनुपज्ञापन स्थान) अणुजाणह मे मिउग्गह, (२)
निसीहि (गुरुके अवग्रहमें प्रवेश कर रहे हे वो भाव दर्शानेके लिए शरीरको थोडा आगे करे)
अ हो का यं
काय संफासं खमणिज्जो भे ! किलामो ?
(३-शरीरयात्रा पृच्छा स्थान) अप्प किलंताणं ! बहु सुभेण भे ! दिवसो वइक्कतो (३)