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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
(कायोत्सर्ग) न पारूं (पूर्ण कर छोडूं), तब तक स्थिरता, मौन व ध्यान रखकर अपनी काया को वोसिराता हूं (काया को मौन व ध्यान के साथ खडी अवस्था में छोड देता हूं)।
( अतिचारकी आठ गाथा और न आयें तो आठ नवकारका काउस्सग्ग करें
फिर प्रगट लोगस्स कहे ।)
अतिचारकी गाथा पंचाचारके भेदका वर्णन और उसमे लगे अतिचारकी क्षमायाचना
नाणम्मि दंसणम्मि अ, चरणम्मि तवंमि तह य वीरियम्मि; आयरणं आयारो, इअ एसो पंचहा भणिओ (१) काले विणए बहुमाणे, उवहाणे तह अनिण्हवणे; वंजण अत्थ तदुभए, अट्टविहो नाणमायारो (२)
निस्संकिअ निक्कंखिअ,
निव्वितिगिच्छा अमूढदिही अ; उववूह थिरीकरणे, वच्छल्ल पभावणे अह (३) पणिहाण जोग जुत्तो, पंचहिं समिईहिं तीहिं गुत्तीहिं;
एस चरित्तायारो, अकृविहो होइ नायव्वो (४) बारस विहम्मि वि तवे, सब्मिंतर बाहिरे कुसलदिहे,
अगिलाइ अणाजीवी, नायव्वो सो तवायारो (५) अणसण मूणोअरिया, वित्ति संखेवणं रसच्चाओ; काय किलेसो संलीणया य, बज्झो तवो होइ (६)