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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
( पूर्ववत् एक नवकारका काउस्सग्ग करके, पारके,
'स्नातस्या' की दूसरी गाथा बोलना । )
पंचपरमेष्ठिको नमस्कार . नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, सात नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं,
एसो पंच नमुक्कारो,
सव्व पावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं || १) मैं नमस्कार करता हूं अरिहंतो को, मैं नमस्कार करता हूं सिद्धों को, मैं नमस्कार करता हूं आचार्यों को, मैं नमस्कार करता हूं उपाध्यायों को, मैं नमस्कार करता हूं लोक में (रहे) सर्व साधुओं को, यह पांचो को किया नमस्कार, समस्त (रागादि) पापों (या पापकर्मो) का अत्यन्त नाशक है, और सर्व मंगलों में श्रेष्ठ मंगल है । (१)
स्नातस्याकी थोय - २ सर्व प्रकारके सुर-असुरके इन्द्रो द्वारा महावीर स्वामीके जन्म अभिषेककी गाथा
हंसां साहत पद्मरेणु कपिश,
क्षीरार्ण वाम्भो भृतैः, कुंभै रप्सरसां पयोधरभर प्रस्पर्धिभिः कांचनैः ।
येषां मन्दर रत्नशैल शिखरे,