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________________ ५८ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित प्रभुकी वंदना करने के लिए माटे श्रद्धादि द्वारा आलंबन लेकर कायोत्सर्ग करनेका विधान अरिहंत चेईयाणं, करेमि काउस्सग्गं (१) ACS वंदणवत्तियाए, पूअणवत्तियाए, सक्कारवत्तियाए, सम्माणवत्तियाए, बोहिलाभवत्तियाए, निरुवसग्गवत्तियाए (२) सद्धाऐ, मेहाए, धिईए, धारणाए, अणुप्पेहाए, वड्डमाणीए ठामि काउस्सग्गं (३) अरिहंत प्रभु की प्रतिमाओंके आलंबनसे (मन-वचन-काय से संपन्न) वंदन हेतु, (पुष्पादि से सम्पन्न) पूजन हेतु, (वस्रादि से सम्पन्न) सत्कार हेतु, (स्तोत्रादि से सम्पन्न) सन्मान हेतु, (तात्पर्य, वंदनादि की अनुमोदना के लाभार्थ) (एवं) सम्यक्त्व हेतु, मोक्ष हेतु, (यह भी कायोत्सर्ग ‘किन साधनों से ? तो उसका जवाब) वड्ढमाणीए - बढती हुई श्रद्धा, तत्वप्रतीति से (शर्मबलात्कार से नहीं), मेधा - शास्त्रप्रज्ञा से (जडता से नहीं), धृति - चित्तसमाधि से (रागादि व्याकुलता से नहीं), धारणा - उपयोगदृढता से (शून्य-चित्त से नहीं), अनुप्रेक्षा - तत्त्वार्थचिंतन से (बिना चिंतन नहीं), मैं कायोत्सर्ग करता हूं | इस सूत्रको लघुचैत्यवंदन' सूत्र भी कहते है। कई जीनालयोमें दर्शन - वंदनका अवसर साथमें आता है | तब सभी स्थलो पर चैत्यवंदन करना शक्य न हो तब १७ संडासा (प्रर्माजना)के साथमें तीन बार खमासमण देने के बाद योग मुद्रामें ये 'श्री अरिहंत चेईयाण सूत्र' बोल कर एक श्री नवकारमंत्र का कायोत्सर्ग कर स्तुति-थोय बोल कर,फिरसे एक खमासमण देनेसे'लघुचैत्यवंदन' का लाभ मिलता है।
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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