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Lord Padmaprabha
बभार पद्मां च सरस्वती च भवान्युरस्तात्प्रतिमुक्तिलक्ष्म्याः । सरस्वतीमेव समग्रशोभां सर्वज्ञलक्ष्मी ज्वलितां विमुक्तः ॥
(6-2-27)
सामान्यार्थ - आपने मोक्ष रूपी लक्ष्मी की प्राप्ति के पहले अर्थात् अरिहन्त अवस्था में अनन्तज्ञानादि-रूप लक्ष्मी तथा दिव्यध्वनि-रूप सरस्वती दोनों को धारण किया था और सर्व शोभा से परिपूर्ण समवसरण आदि विभूति को धारण किया था। और जब आप समस्त कर्म-मल से रहित होकर मोक्ष को प्राप्त हुए तब आपने सदा-प्रकाश-रूप निर्मल अनन्तज्ञानादि विभूतियों को धारण किया था।
Before the attainment of liberation, you possessed attributes like the omniscience, the divine voice, and the splendour of the heavenly Pavilion (samavasarana). Subsequently, you rid yourself of all karmas and embraced the ever-effulgent, allknowing state of liberation.
शरीररश्मिप्रसरः प्रभोस्ते बालार्करश्मिच्छविरालिलेप । नरामराकीर्णसभा प्रभावच्छैलस्य पद्माभमणेः स्वसानुम् ॥
(6-3-28)
सामान्यार्थ - हे पद्मप्रभ भगवन् ! प्रात:काल के बाल सूर्य की किरणों के समान कान्ति वाली आपके शरीर की किरणों के विस्तार ने मनुष्यों और देवों से व्याप्त समवसरण सभा को उस तरह आलिप्त कर लिया था जैसे
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