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रक्तेक्षण समद कोकिल-कण्ठ-नील क्रोधो फणिनमुत्कणमापतन्तम् । आक्रामति क्रमयुर्गन निरस्तकप्रत्यन्नाम-नागदमनी हृदि यस्य पुंसः ॥४१॥
हे प्रभो। ऐसा भयंकर काला नाग, जिसकी आँखें लाल मणि सी चमक रही हो, समूचा शरीर कोकिल के कण्ठ की भाँति गहरा नीला काला, डरावना हो, जी क्रोधान्मत्त होकर ऊँचा फन किये फुंकारता आ रहा हो, परन्तु आपका भक्त, जिसके हृदय में आपके नाम स्मरणरूपी नागदमनी पाही विद्यमान है उस कुद्ध नाग को भी निशंक निर्भय होकर पुष्पमाला की भाँति लाँघ जाता है, अर्थात् आपका भक्त सदा सर्प भय से मुक्त रहता है।
કે દયાળુ દેવ! જે પુરુષના હૃદયમાં તમારા નામરૂપી નાગદમની ઔષિધ હોય, તે પુરુષ લાલચોળ નંગવાળા, મદોન્મત્ત તથા કોપલ જેવા કાળા, કોષિત, છંછેડાયેલા, ઊંચી કેશવાળા, સામે પસી આવતા સર્પને પણ નિર્ભય થઈને ઓળંગી જાય છે અને સા भयमुक्त २४ ७.४१.
A snake with its menacing hood and eyes reddened with anger cannot harm your true disciples; your teachings make your students immune to the poisons of the snake, and your name gives them the courage to confront it. (41)