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सम्पूर्ण-मण्डल-शशाङ्क-कला-कलापशुभा गुणास्त्रिभुवन तब लंधयन्ति ।
ये सनिवास-निजगदीश्वर नाथमेकम् कस्तान निवारयति संचरतो क्येष्टम् ||१४||
हे जगदीवर! पूर्णमासी के पन्द्रमा की ज्योत्स्ना को सनान आपके जनना शान-दर्शन आदि निर्मल गुण तीन लोक में सर्वत्र व्याप्त है. सीन लीक में सर्वत्र आपके गुण गाये जाते हैं। भला आप जैसे विश्व के एकमात्र अधिष्ठाता प्रभु का आश्रय पाने वालों को इच्छानुसार विचरने में कौन रोक सकता है? (कोई नहीं ) ।।१४।।
હે ત્રિલોકનાથ' પૂર્ણિમાના ચંદ્રની કળા જેવા ઉજજવળ તથા નિર્મળ એવા આપનો ગુનો, બેડો લોકમાં સર્વત્ર વ્યાપ્ત છે. તમારો આયે રહેલા ના મોગામી ગુણોને પ્લે સ્કાએ વિચરતાં કોણ રોકી શકે ભલા? ૧૪,
The glow of the moon is limited by the reach of its light. The aura of Bhagawan is without limit and touches every soul in every realm. His words are heard everywhere and the reach of his influence is universal. (14)