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१४. (प्रश्न) आगमतः द्रव्य आवश्यक किसे कहते हैं ?
(उत्तर) आगम से द्रव्य आवश्यक का स्वरूप इस प्रकार है-जिस (श्रमण) ने आवश्यक पद शिक्षित-सीख लिया है। ठित-(हृदय में) स्थिर कर लिया है। जित-स्मृति में धारण कर लिया है। मित-श्लोक, पद आदि की संख्या से भलीभाँति अभ्यास कर लिया है। परिजित-आनुपूर्वी-अनानुपूर्वीपूर्वक परावर्तित कर लिया है। नामसमं-अपने नाम के समान याद कर लिया है। घोषसमं-उदात्त-अनुदात्त स्वरों के अनुरूप उच्चारण किया है। अहीणक्खरं-अक्षरों की हीनतारहित। अनत्यक्षर-अक्षरों की अधिकतारहित। अव्याविद्धाक्षर-व्यतिक्रमरहित, उच्चारण किया है। अस्खलित-बीच-बीच में विराम दिये बिना अथवा अक्षरों को छोड़े बिना धारा-प्रवाह। अमीलित-दूसरे पदों को बिना मिलाये अमिश्रित उच्चारण किया है। अव्यत्यानेड़ित-एक ही शास्त्र के भिन्न-भिन्न सूत्रों को एकत्रित करके पाठ नहीं किया है। प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्णघोषयुक्त, कण्ठ और होठ से निकला हुआ तथा जिसे गुरु वाचना से प्राप्त किया गया है, वह आवश्यक पद के अध्ययन, प्रश्न, परावर्तन और धर्मकथा में प्रवृत्त होता है, तब आगमतः द्रव्य आवश्यक है। किन्तु वह अनुप्रेक्षा-अर्थ के अनुचिन्तन रूप उपयोग से शून्य होता है इसलिए उस चित्त की प्रवृत्ति से शून्य को आगमतः द्रव्य आवश्यक कहा है। क्योंकि अनुप्रेक्षारहित उपयोगशून्य क्रिया द्रव्य है। (1) AGAMATAH DRAVYA AVASHYAK
14. (Question) What is agamatah dravya avashyak (physical avashyak with scriptural knowledge) ?
(Answer) Physical avashyak in context of Agam is like this—(For instance) a person (an ascetic) has studied properly (shikshit); understood and absorbed (thit); retained in mind (jit); made assessment in terms of number of verses, words, syllables, etc. (mit); perfected by revising in normal and reverse sequence (parijit); committed to memory as firmly as one's own name (naamsamam) the text of Avashyak (Sutra) and recited it fluently with phonetic perfection (ghoshasamam) without shortening syllables (ahinaksharam); without extending syllables (anatyakshar),
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The Discussion on Essentials
आवश्यक प्रकरण
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