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without shifting syllables (avyaviddhakshar); and without skipping syllables (askhalit); without mixing up of different phrases (amilit); and without combining different phrases and aphorisms (avyatyamredit). When such person proceeds to study, inquire into, revise and teach this Avashyak Sutra acquired through the discourse of the guru (guruvachanopagat) emanating from vocal cords and lips (kanthoshtavipramukta) and rendered eloquently (pratipurna) in perfect accent (pratipurnaghosh), he is known as physical avashyak in context of Agam. This is so due to the fact that he is devoid of the faculty of contemplating the meaning (spirit) of the text and any action devoid of the faculty of contemplating is only physical (dravya).
विवेचन-इस सूत्र में आगमतः द्रव्य आवश्यक के सत्रह विशेषण उसकी पूर्ण शुद्धि के सूचक हैं। जैसे
(१) सिक्खितं (शिक्षित)-आदि से अन्त तक पूर्ण रूप से पढ़ लिया है। (२) ठितं (ठित)-स्मृति में अच्छी प्रकार जमा लिया है।
(३) जितं (जित)-उस पाठ को इतना स्थिर कर लिया है कि पुनरावर्तन के समय तुरन्त स्मृति में आ जाये।
(४) मितं (मित)-सीखे हुए ग्रन्थ का श्लोक, पद, वर्ण, मात्रा आदि से भली प्रकार निर्धारण कर लिया है।
(५) परिजितं (परिजित)-ग्रंथ का पाठ इतना पक्का जमा लिया है कि उसे क्रम या व्युत्क्रम किसी प्रकार पूछने पर तत्काल दुहरा सकता है।
(६) णामसमं (नामसम)-अपने नाम की तरह ग्रन्थ के प्रत्येक भाग को याद रखना।
ये छह विशेषण आगम पाठ कण्ठस्थ करने की प्राचीन पद्धति के सूचक हैं। अगले विशेषण उच्चारण-शुद्धि से सम्बन्धित हैं
(७) घोससमं (घोषसम)-गुरु से सूत्र ग्रहण करते समय उदात्त, अनुदात्त स्वरों का आरोह, अवरोहपूर्वक उच्चारण करना। ध्वनि विज्ञान में उसे ही रीजिंग-फौलिंग टोन कहते हैं। अनुयोगद्वार सूत्र
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Illustrated Anuyogadvar Sutra
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