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________________ चाहता है और हमें कौन-सा अर्थ ग्रहण करना चाहिए इसका सम्यक् व्यवहार तभी हो सकता है जब हम निक्षेप दृष्टि से विचार करें। जैनशास्त्रों में शब्दों की उपयुक्त और वांछित व्याख्या करने के लिए निक्षेप पद्धति का उपयोग किया गया है। निक्षेप पद्धति से 'भाषा' और 'भाव' बीच उचित संगति बैठ सकती है। आचार्यों ने निक्षेप की अनेक परिभाषाएँ और व्याख्याएँ की हैं। श्री जिनभद्रगणि ने बताया है - 'नि' का अर्थ है- 'नियत' और 'निश्चित' । 'क्षेप' का अर्थ है - न्यास करना । वक्ता शब्द द्वारा जिस भाव को प्रकट करना चाहता है, उस भाव को, उस शब्द में फिट करना, क्षेप अर्थात् 'न्यास' अथवा स्थापना करना 'निक्षेप' है । (विशेषावश्यक भाष्य, गाथा ९१२) 'निक्षेप' कम से कम चार प्रकार का होता है-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । अधिक की कोई सीमा नहीं है। (१) नाम - निक्षेप - किसी वस्तु को पहचानने के लिए उसका कोई न कोई नाम या संज्ञा रखना नाम-निक्षेप है। जैसे किसी का नाम रख दिया- 'महावीर' या 'भगवान' । उसमें महावीर या भगवान का कोई भी गुण नहीं है, किन्तु केवल उसकी पहचान या उसे पुकारने के लिए उसका नाम महावीर है। गुणहीन होने पर भी केवल पहचान मात्र के लिए नाम-निक्षेप की उपयोगिता है। किसी मूर्ख का नाम विद्यासागर रख देना, भिखारी को राजा कहना नामनिक्षेप के उदाहरण हैं । (२) स्थापना - निक्षेप - वस्तु की पहचान के लिए चित्र, मूर्ति या प्रतीक में उस नाम की स्थापना कर देना। किसी मूर्ति या चित्र को 'महावीर' नाम से स्थापित कर देना, यह स्थापना- निक्षेप है। नाटक के विविध पात्र विभिन्न वेशभूषा धारण करके राम, रावण का अभिनय करते हैं । यह स्थापना- निक्षेप है। (३) द्रव्य - निक्षेप - बालक रूप महावीर को अथवा मोक्ष बाद भगवान महावीर के निर्जीव शरीर को या 'महावीर' नामक किसी व्यक्ति की निर्जीव देह को 'महावीर' नाम से पहचानना, पुकारना । यह द्रव्य - निक्षेप है । अतीत में जो कभी अध्यापक रहा है उसे 'गुरुजी' नाम से पुकारना या भविष्य में मंत्री बनने वाला है, उसे 'मंत्रीजी' कहना, यह सभी द्रव्य - निक्षेप में आते हैं। द्रव्य-निक्षेप के अनेक भेदोपभेद हैं- मुख्य तीन भेद इस प्रकार हैं (१) ज्ञ (ज्ञायक) शरीर, (२) भव्य शरीर, (३) तद्व्यतिरिक्त । द्रव्य-निक्षेप, भाव-निक्षेप की पूर्व या पश्चात्वर्ती अवस्था विशेष है। आवश्यक प्रकरण ( २१ ) *********** ସତ ସତ କହୁ Jain Education International For Private & Personal Use Only The Discussion on Essentials www.jainelibrary.org
SR No.007655
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages520
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size18 MB
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