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(2) Chaturvinshatistava, (3) Vandana, (4) Pratikraman, (5) Kayotsarga, and (6) Pratyakhyan. These will be discussed in due course. निक्षेप की सूचना ___७. तम्हा आवस्सयं णिक्खिविस्सामि, सुयं णिक्खिविस्सामि, खधं णिक्खिविस्सामि, अज्झयणं णिक्खिविस्सामि।
७. इसलिए मैं यहाँ आवश्यक का निक्षेप करूँगा, श्रुत का निक्षेप करूँगा, स्कंध का निक्षेप करूँगा, अध्ययन का निक्षेप करूँगा। INFORMING ABOUT ATTRIBUTION OF TERMS LIKE AVASHYAK
7. Therefore I undertake nikshep (attribution) of Avashyak, attribution of Shrut, attribution of Skandh, and attribution of Adhyayan. ८. जत्थ य जं जाणेजा णिक्खेवं णिक्खिवे गिरवसेसं।
जत्थ वि य न जाणेजा चउक्कयं निक्खिवे तत्थ॥१॥ ८. निक्षेप करने वाला जिस विषय पर, जितने निक्षेपों की जरूरत समझता हो, वहाँ उन सभी निक्षेपों का न्यास करना चाहिए। यदि निक्षेप्ता को सब निक्षेपों का ज्ञान न हो तो वहाँ कम से कम निक्षेप चतुष्टय (चार निक्षेप-नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव) का निक्षेप तो करना चाहिए।
8. One should apply to a subject all required types of attributions known to him about the subject. Where he does not have the knowledge of all the niksheps, he should at least apply the primary quartet of attributions (naam, sthapana, dravya and bhaav).
विवेचन-उक्त दो सूत्रों में निक्षेप करने की बात कही गई है। जैनदर्शन अनेकान्तवादी है, वह वस्तु के सत्य स्वरूप को समझाने के लिए, शब्द के यथार्थ समुचित अर्थ का ज्ञान कराने के लिए अनेक दृष्टियों से उसकी व्याख्या करता है। क्योंकि शब्द बहुत सीमित है और अर्थ असीम है। एक शब्द में अनेक अर्थ छिपे रहते हैं। कौन कहाँ पर कौन-सा अर्थ प्रकट करना अनुयोगद्वार सूत्र
Illustrated Anuyogadvar Sutra
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