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अनुभावात्मक ज्ञान है इसलिए ये स्थापना योग्य है। परन्तु श्रुतज्ञान शब्द व्यवहार में समर्थ है, परोपदेश में समर्थ है, शब्दात्मक है अतः वह लोकोपकारी है। उसके उद्देश आदि होते हैं। श्रुतज्ञान का विषय सबसे अधिक व्यापक है, गम्भीर है, अतः वह गुरु के उपदेश आदि की अपेक्षा रखता है।
Elaboration–Elaborating this aphorism the commentator (Churni) states-Besides shrut-jnana all the four kinds of jnana are only to be stabilized and ensconced. This means that they are of no use to others. These are subjects of self-experience and thus worth stabilizing only. But shrut-jnana can be used, can be preached to others, and is verbal. Thus it can be used for the benefit of people. It can be studied, revised and taught. The field of shrut-jnana is very wide and profound, therefore it requires teaching or preaching by a guru.
पारिभाषिक शब्द-उद्देश-सर्वप्रथम शास्त्र पढ़ने के लिए शिष्य गुरु से आज्ञा माँगता है। तब गुरु उपदेश या प्रेरणा देते हैं, मार्गदर्शन करते हैं। शास्त्र पाठ की विधि बताते हैं। यह उद्देश कहा जाता है। ___ समुद्देश-पढ़े हुए आगम का, श्रुतज्ञान का उच्चारण कैसे करना, कब करना, उसके हीनाक्षर आदि दोषों का परिहार करके बार-बार स्वाध्याय की प्रेरणा देना, ताकि पढ़ा हुआ श्रुतज्ञान स्थिर रह सके, यह समुद्देश है। ___ अनुज्ञा-पढ़े हुए श्रुतज्ञान को अपने हृदय में, स्मृति में, संस्कारबद्ध करके धारण करना
और फिर दूसरों के उपकार के लिए उसका अध्ययन कराने की प्रेरणा देना अनुज्ञा है। ___ अनुयोग-पढ़े हुए श्रुतज्ञान को योग्य अर्थ के साथ जोड़कर उसकी अर्थ-संगति करना, उसकी व्याख्या करना अनुयोग है।
सूत्र अणुरूप अर्थात् संक्षिप्त होता है और अर्थ विस्तृत होता है। एक सूत्र के अनेक अर्थ हो सकते हैं। कहाँ पर कौन-सा अर्थ उपयुक्त है, इसका योग करना अनुयोग है। वृत्तिकार ने कहा है
निययाणुकूलो जोगो सुत्तत्थस्स जो य अणुओगो। सुत्तं च अणु तेण जोगो अत्थस्स अणुओगो॥
-वृत्ति पत्र ७ 'अनु' अर्थात् नियत और निश्चित अर्थ को सूत्र अभिप्राय के साथ जोड़ना; 'योग करना'-अर्थात् सूत्रकार के आशय के अनुरूप उसके अर्थ की व्याख्या करना अनुयोग है। आवश्यक प्रकरण
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The Discussion on Essentials
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