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की स्थिति वाले अनन्त द्रव्य एक ही आनुपूर्वी हैं। इसी प्रकार चार समय की स्थिति वाले अनन्त द्रव्य एक आनुपूर्वी हैं यावत् दस समय की स्थिति वाले यावत् असंख्य समय की स्थिति वाले द्रव्यों की एक-एक आनुपूर्वी है।
अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्य असंख्यात कैसे-यद्यपि एक समय की स्थिति वाले और दो समय की स्थिति वाले द्रव्यों में प्रत्यके द्रव्य अनन्त है। लेकिन लोक के केवल असंख्यात प्रदेश हैं, अतः उनके अवगाह भेद असंख्यात हैं। एक समय की स्थिति वाले और दो समय की स्थिति वाले जितने भी द्रव्य हैं, उनमें अवगाहना के संदर्भ में यह भिन्नता है। अतएव इस भिन्नता के कारण प्रत्येक द्रव्य असंख्यात हैं। तात्पर्य यह है कि लोक असंख्यातप्रदेशी हैं, उनकी वर्तना हेतु काल के समय भी असंख्य है, अतः लोक में एक समय की स्थिति वाले और दो समय की स्थिति वाले द्रव्यों के रहने के स्थान असंख्यात हैं। इसलिए एक समय की और दो समय की स्थिति वाले प्रत्येक द्रव्य में असंख्यातता सिद्ध है।
Elaboration—The reason for stating anupurvi and other substances as uncountable is that although there are infinite substances in the universe with three samaya existence, there is a uniformity in all substances with one or more paramanus in context of time of existence. Because in context of kaal-anupurvi (time sequence) more emphasis is on time (kaal) and less on substantiality (dravyatva), all the infinite substances including paramanus of a specific period of existence (one, two, three, four samaya and so on) are counted as just one (sequential, etc.) substance. In other words all the infinite substances with three samaya existence form just one anupurvi (sequence). In the same way all the infinite substances with four samaya existence form just one anupurvi (sequence). And so on up to uncountable samaya existence.
Why ananupurvi and avaktavya inexpressible) substances are uncountable ?-Each type of substances having one and two samay existence is infinite in number. But there are only uncountable space points in the universe. Thus the variations in terms of occupancy can only be uncountable. This numerical variation in all substances having one or two samaya existence is in context of occupancy. It is due to this variation that substances of each said type are uncountable in number and not
आनुपूर्वी प्रकरण
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The Discussion on Anupurvi
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