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(३) क्षेत्रप्ररूपणा
१२५. संगहस्स आणुपुब्बीदव्वाइं लोगस्स कतिभागे होज्जा ? किं संखेज्जतिभागे होज्जा ? असंखेज्जतिभागे होज्जा ? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? सव्वलोए होज्जा ?
नो संखेज्जतिभागे होज्जा, नो असंखेज्जतिभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नियमा सव्वलोए होज्जा ? एवं दोणि वि।
१२५ . ( प्रश्न ) संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य लोक के कितने भाग में हैं ? क्या संख्यात भाग में हैं ? असंख्यात भाग में हैं ? संख्यात भागों में हैं ? असंख्यात भागों में हैं ? अथवा सर्वलोक में हैं ?
(उत्तर) समस्त आनुपूर्वीद्रव्य लोक के संख्यात भाग, असंख्यात भाग, संख्यात भागों या असंख्यात भागों में नहीं हैं किन्तु नियमतः सर्वलोक में हैं।
इसी प्रकार का कथन दोनों (अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक) द्रव्यों के लिए भी समझना चाहिए।
(3) KSHETRA-DVAR
125. (Question ) In what area or section of the universe (occupied space) do the samgraha naya sammat anupurvi dravya (sequential substances conforming to generalized viewpoint) exist. Are they in its countable fraction ? Are they in its uncountable (infinitesimal) fraction ? Are they in its countable sections ? Are they in its uncountable sections ? or are they in the whole universe?
(Answer) With respect to all anupurvi (sequential) substance, they exist not just in countable fractions, uncountable fractions, countable sections, or uncountable sections of the universe but as a rule, they exist in the whole universe.
The same holds good for the other two type of substances (ananupurvi or non-sequential inexpressible).
and
avaktavya
आनुपूर्वी प्रकरण
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( २०९ )
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The Discussion on Anupurvi
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