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(४) स्पर्शना प्ररूपणा
१२६. संगहस्स आणुपुचीदव्वाइं लोगस्स किं संखेजतिभागं फुसंति ? असंखेजतिभागं फुसंति ? संखेज्जे भागे फुसंति ? असंखेज्जे भागे फुसंति ? सव्वलोगं फुसंति ?
नो संखेज्जतिभागं फुसंति, नो असंखेज्जतिभागं फुसंति, नो संखेज्जे भागे फुसंति, नो असंखेज्जे भागे फुसंति, नियमा सबलोगं फुसंति। एवं दोनि वि।
१२६. (प्रश्न) संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य क्या लोक के संख्यात भाग का, असंख्यात भाग का, संख्यात भागों या असंख्यात भागों या सर्वलोक का स्पर्श करते हैं ?
(उत्तर) आनुपूर्वीद्रव्य लोक के संख्यात भाग का स्पर्श नहीं करते हैं, असंख्यात भाग का स्पर्श नहीं करते हैं, संख्यात भागों और असंख्यात भागों का भी स्पर्श नहीं करते हैं, किन्तु नियम से सर्वलोक का स्पर्श करते हैं।
इसी प्रकार का कथन अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक रूप दोनों द्रव्यों के लिए भी समझना चाहिए। (4) SPARSHANA-DVAR
126. (Question) Do the samgraha naya sammat anupurvi dravya (sequential substances conforming to generalized viewpoint) have spatial contact with countable fraction of the universe (occupied space), with uncountable fraction, with countable sections, with uncountable sections, or with the whole universe ? ___ (Answer) With respect to all anupurvi (sequential) substances, they have spatial contact not just with countable fractions, uncountable (infinitesimal) fraction, countable sections, or uncountable sections of the universe but with the whole universe.
The same holds good for the other two type of substances (ananupurvi or non-sequential and avaktavya or inexpressible). अनुयोगद्वार सूत्र
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Illustrated Anuyogadvar Sutra
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